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अक्सर ही लोग छोटी मोटी चीजें जैसे मोबाइल या चश्मा कहीं भी रख कर भूल जाते हैं. आप को अगर OTT पर मूवी देखनी हो या पेपर वाले, प्रेस वाले, बिजली या राशन के बिल का भुगतान करना हो ,बाजार जाना हो या फिर कोई भी काम जिसे आप करना चाहते हैं लेकिन अक्सर ही भूल जाते हैं तो इस बात को लेकर बहुत ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है.

जी हाँ ये कोई बीमारी नहीं है. दरअसल युवावस्था में अगर आपके साथ भी ऐसा कुछ हो रहा हो तो इस बात के लिए घबराने की जरूरत तो बिलकुल नहीं है कि कहीं आप को भूलने की बीमारी अल्जाइमर तो नहीं हो गया. ऐसा इसलिए क्योंकि वैज्ञानिकों के हिसाब से ‘भूलना’ दरअसल सीखने का ही एक रूप है. भूलने का ये मतलब नहीं है कि जो बातें इंसान भूल जाता है वो उसे दोबारा याद नहीं आएगीं.

आप इसे ऐसे समझे कि भूलना दिमाग को कुछ ज्यादा जानकारी दिलाने , हासिल करने और उसे स्टोर करने में मददगार होता है. बता दे ट्रिनिटी कॉलेज और टोरंटो यूनिवर्सिटी के रिसर्चर के हिसाब से भूली हुई यादें, दरअसल हमेशा के लिए नहीं खोती हैं बस इंसान किसी वजह से उन तक पहुंच नहीं पाता है.

शोध में वैज्ञानिक बताते है कि दिमाग ही तय करता है हमें कौन सी चीजें और बातें यादें रखनी हैं. और वो कौन सी बाते हैं जिन्हें हम आसानी से भूल सकते हैं. वक़्त के साथ यादों का कमजोर पड़ना भी कुछ नया सीखने की प्रकिया का हिस्सा ही होता है. उनके हिसाब से कुछ यादें स्थायी रूप से न्यूरॉन्स के सेट में संग्रहीत होती हैं और वो अवचेतन मन में स्टोर होती हैं इसलिए वो बातें इंसान कभी भी नहीं भूलता है. यानी कौन सी बात या याद हमारे लिए ज्यादा जरूरी है और कौन सी नहीं ये भी दिमाग ही तय करता है हम नहीं.

मीडिया और जर्नलिज्म में 20 वर्षों के अनुभव और बड़े TV और अख़बारों के संपादकों की प्रेरणा...