Rajasthan Panchayat Chunav 2026 Date: राजस्थान हाईकोर्ट ने शहरी निकाय और पंचायत चुनावों के लिए अंतिम तारीख भले ही तय कर दी हो, लेकिन धरातल पर इन चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) आरक्षण के लिए आवश्यक सर्वे का काम अब तक शुरू नहीं हो पाया है। इस देरी की मुख्य वजहों में पंचायतों के परिसीमन की अटकी हुई प्रक्रिया और शहरी निकाय क्षेत्रों में सर्वे के लिए पर्याप्त नोडल अधिकारियों की नियुक्ति न होना शामिल है। कई ज़िलों ने मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) कार्य में व्यस्तता का हवाला देकर सर्वे के लिए कर्मचारी उपलब्ध कराने में असमर्थता जताई है।

ओबीसी आयोग की रिपोर्ट में हो रही देरी

कर्मचारियों की कमी और परिसीमन की अस्पष्टता के चलते ओबीसी (राजनीतिक आरक्षण) आयोग की सर्वे रिपोर्ट आने में देरी हो रही है। हालांकि, आयोग ने अब आमजन से संवाद का संभागवार कार्यक्रम जारी कर दिया है, जो सोमवार को शुरू होगा और 8 दिसंबर तक चलेगा, लेकिन ज़मीनी सर्वे के बिना रिपोर्ट तैयार करना असंभव है। शहरी विकास राज्य मंत्री झाबर सिंह खर्रा बार-बार बयान दे रहे हैं कि आयोग की रिपोर्ट आते ही वार्डों के आरक्षण की लॉटरी जारी कर दी जाएगी, जिससे यह संदेश स्पष्ट है कि सरकार चुनाव के लिए तैयार है, लेकिन देरी आयोग स्तर पर रिपोर्ट में हो रही है।

परिसीमन की अधिसूचना नहीं, सर्वे कैसे हो?

पड़ताल में सामने आया है कि ओबीसी आरक्षण के लिए सर्वे में देरी का सबसे बड़ा कारण यह है कि पंचायतों के परिसीमन की अधिसूचना अभी तक जारी नहीं हुई है। आयोग बिना सीमा तय हुए ग्रामीण क्षेत्रों में ओबीसी आरक्षण के लिए सर्वे कराने में असमर्थ है, क्योंकि उन्हें यह पता ही नहीं है कि किस पंचायत या वार्ड का सर्वे कहाँ किया जाना है। सीमा तय हुए बिना सर्वे का कोई आधार नहीं बन सकता।

डेडलाइन का दबाव और आयोग की चुनौतियाँ

राजस्थान हाईकोर्ट ने स्थानीय निकाय व पंचायत चुनावों के परिसीमन का कार्य पूरा करने के लिए 31 दिसंबर की डेडलाइन तय की है। संयोगवश, इसी दिन ओबीसी आयोग का कार्यकाल भी पूरा हो रहा है। आयोग का अब तक का अधिकांश समय आवश्यक संसाधनों को जुटाने में ही बीत गया है। शुरुआत में आयोग को बजट, सरकारी गाड़ी और सर्वे कार्य के लिए कर्मचारी जुटाने में काफी संघर्ष करना पड़ा। यहाँ तक कि कुछ उच्च अधिकारी भी आयोग के फोन तक नहीं उठा रहे थे, जिसने प्रक्रिया को और धीमा कर दिया।

चुनाव की पारदर्शिता पर सवाल

ओबीसी आरक्षण के लिए सर्वे का काम शुरू न हो पाना, हाईकोर्ट द्वारा दी गई समय-सीमा के भीतर चुनाव संपन्न कराने पर सवाल खड़े करता है। ओबीसी आरक्षण एक संवैधानिक और राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दा है। अगर समय पर सर्वे नहीं हुआ और रिपोर्ट नहीं आई, तो इससे न केवल चुनाव प्रक्रिया में देरी होगी, बल्कि आरक्षण की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर भी सवाल उठ सकते हैं। चुनाव प्रक्रिया को सुचारु रूप से चलाने के लिए तत्काल परिसीमन अधिसूचना जारी करना और आयोग को पर्याप्त कर्मचारी उपलब्ध कराना आवश्यक है।