नई दिल्ली। ‘हारे का सहारा बाबा श्याम हमारा’ लोगों की भक्ति में डूबा खाटू श्याम बाबा का प्रसिद्ध मंदिर राजस्थान का सीकर हमेशा भक्तो की भीड़ से उमड़ा रहता है। लोग इस मंदिर में अपनी झोली फैलाकर आते है और झोली भरकर जाते है। बेसहारा कमजोर लोगों के मदद करने वाले श्याम बाबा अपने भक्तों की हर मनोकामनाएं पूरी करते हैं। आज हम बता रहे हैं बर्बरीक के बाबा खाटू श्याम बनने की कहानी…

बाबा खाटू श्याम का संबंध महाभारत के युद्ध से ज्यादा जुड़ा है। भले ही इस युद्ध में वो पहुंच नही पाए, लेकिन इसके बाद भी वो अमर हो गए। 18 दिनों तक चले महाभारत के युद्ध में कई रिश्तों का अंत हुआ था जो सब एक ही कुल के थे। कुरुक्षेत्र के इस मैदान में कई वीर योद्धाओं ने अपने प्राणओं की आहूती दी थी। इस युद्ध में एक ऐसे योद्धा की भी एंट्री होने वाली थी जो अपने एक वाण से पूरे युद्ध को जीताने की क्षमता रखते था जिसके आने से भगवान कृष्ण खुद डर गए थे।  वह योद्धा था महाबली भीम का पौत्र घटोत्कच का बेटा बर्बरीक। जिसके पास कई दिव्य शक्तियां मौजूद थी।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, बर्बरीक के पास वरदान रूपी ऐसे तीन बाण थे जिससे वह तीनों लोकों के असानी के साथ जीत सकते हैं। और इन्हीं तीन बाणों से बर्बरीक महाभारत के युद्ध को लड़ने के लिए निकले थे। तब बर्बरीक की मां ने सिखाया था कि युद्ध में हमेशा कमजोर पक्ष का साथ देना।

जब इस बात की भनक जैसी ही प्रभु श्री कृष्ण को लगी, कि बर्बरीक इस युद्ध को लड़ने आ रहा है तो वो परेशान हो गए, क्योंकि उन्हें पता था कि बर्बरीक मां के बातों को ध्यान मे रखते हुए उस पक्ष का साथ देगा, जो युद्ध में हार रहा होगा।  प्रभु श्री कृष्ण ने अपनी कूटनीति से बर्बरीक के सामने आकर उनका शीश दान में मांग लिया और बर्बरीक ने तुंरत तलवार निकालकर श्री कृष्ण को अपना सिर अर्पण कर दिया।

बर्बरीक के इस बलिदान को देखकर श्री कृष्ण ने बर्बरीक को कलियुग में स्वयं के नाम से पूजित होने का वर दिया।

बर्बरीक ने अपना सिर अर्पित करने के बाद भगवान श्री कृष्णा से पूरा युद्ध देखने की इच्छा जताई थी,तब श्री कृष्ण ने उनके सिर को समीप ही एक पहाड़ी, जिसे खाटू कहा जाता था, वहां स्थापित कर दिया, और इसी जगह पर रहकर बर्बरीक ने पूरे युद्ध को देखा. पौराणिक कथाओं के मुताबिक, युद्ध समापन के बाद श्री कृष्‍ण ने बर्बरीक के शीश को आशीर्वाद देकर रूपावती नदी में बहा दिया था।

कलयुग शुरू होने के बाद, बर्बरीक का शीश राजस्‍थान के खाटू गांव की धरती में अंदर दबा हुआ था। जिसमें एक गाय का उस जगह पर पहुंचते ही अपने आप उसके थनों से दूध बहने लगा। इस चमत्‍कार को देख जब गांव वालों ने उस जगह खुदाई की। तो वहां खाटू श्‍याम का शीश मिला। जिसके बाद खाटू गांव के राजा रूप सिंह को भगवान से स्‍वप्‍न देकर एक मंदिर बनवाने को कहा। जिसे खाटू श्‍याम मंदिर के नाम से जाना जाता है। श्‍याम कुंड में ही खाटू श्‍याम का शीश मिला था।