बकरी पालन करना बहुत आसान होता है और ये हर लिहाज़ से किफ़ायती और मुनाफा देने वाला बिजनेस है। आप चाहें तो छोटे-बड़े व्यावसायिक फॉर्म के लिए दर्ज़नों, सैकड़ों या हज़ारों की तादाद में बकरियों का पालन कर सकते हैं।

बकरियों की देखरेख और उनके चारे-पानी का खर्च भी बहुत कम होता है। इस बिजनेस से आप लागत से ज्यादा व 3 से 4 गुना तक का फायदा उठा सकता है। लेकिन इस बिजनेस में आपको कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है।

इसके लिए आपको सही बकरी की नस्ल को चुनना भी बहुत जरूरी है। इस दुनिया में बकरी की करीब 103 नस्लें पाई जाती हैं। जिनमें से 21 नस्लें भारत में हैं। इन नस्लों में प्रमुख हैं – बरबरी, जमुनापारी, जखराना, बीटल, ब्लैक बंगाल, कच्छी, मारवारी, सिरोही, गद्दी, ओस्मानाबादी और सुरती।

बकरी की नस्ल का चयन कैसे करें?
बकरियों की ज़्यादातर नस्लों को घूम-फिर कर घास चरना बहुत पसंद होता है। लेकिन उत्तर प्रदेश और गंगा के मैदानी इलाकों में पायी जाने वाली बरबरी नस्ल की बकरी को कम जगह में खूँट से बाँधकर भी पाल सकते हैं। इस बकरी के लिए वैज्ञानिकों की सलाह है कि यदि किसी किसान या पशुपालक के पास बकरियों को चराने का सही इन्तज़ाम नहीं है तो उसको इस बरबरी नस्ल की बकरी पाल लेनी चाहिए और यदि चराने की व्यवस्था है तो सिरोही नस्ल की बकरी पालना ज्यादा बढ़िया है।

बरबरी नस्ल की बकरी की विशेषताएँ
इस नस्ल की बकरी को चराने नहीं जाना पड़ता है, और ये एक बार में ही तीन से पाँच बच्चे दे सकती है। इनका क़द छोटा लेकिन शरीर काफी गठीला होता है और ये अन्य नस्लों की बकरी से ज़्यादा फुर्तीली होती हैं। इस बरबरी नस्ल की बकरी बहुत तेज़ी से विकासित होती है, इसीलिए इसके मेमने एक साल के बाद ही बेचे जा सकते हैं।

इसके अलावा इस नस्ल की बकरी रोज़ाना करीब एक लीटर दूध दे सकती है। आप इसको कम लागत में किसी भी जगह पाल सकते हैं। इस बकरी के मांस को भी ज़्यादा स्वादिष्ट कहा जाता है, इसीलिए आप इसको बाज़ार में अच्छे दाम में बेच भी सकते हैं। इस बरबरी बकरी को आप फॉर्म हाउस के शेड में एलीवेटेड प्लास्टिक फ्लोरिंग विधि (स्टाल-फेड विधि) से भी पाल सकते हैं। इसमें बकरियों के रहने की जगह की साफ़-सफ़ाई रखना काफी आसान माना जाता है।

बकरी पालन का प्रशिक्षण
मथुरा स्थित केन्द्रीय बकरी अनुसन्धान संस्थान और लखनऊ स्थित द गोट ट्रस्ट बकरी पालने के लिए साल में चार बार प्रशिक्षण कोर्स चलाते हैं। इसमें बकरी पालन बिजनेस करने वालों को भी प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके साथ कृषि विज्ञान केन्द्र से भी बकरी पालन प्रशिक्षण लिया जा सकता है।

बकरी पालन का वैज्ञानिक तरीका
केन्द्रीय बकरी अनुसन्धान संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ एम के सिंह के अनुसार, ‘वैज्ञानिक तरीके से बकरी पालन करके पशुपालक किसान अपनी कमाई को दोगुना और तिगुना बढ़ा सकते हैं। लेकिन इसके लिए बकरी की सही नस्ल का चयन करने के साथ उनको सही समय पर गर्भित करना, और स्टॉल फीडिंग विधि से चारे-पानी का इन्तज़ाम करना काफी लाभकारी होता है। उत्तर भारत में बकरियों को सितम्बर से नवम्बर व अप्रैल से जून महीनों के दौरान गर्भित कराना अच्छा होता है।

बकरियों के लिए साफ़-सफ़ाई है ज़रूरी
ज़्यादातर लोग बकरियों के बाड़े की साफ़-सफ़ाई सही से नहीं करते हैं, जिससे बकरियों में बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। इसीलिए बाड़े की फर्श मिट्टी की हो तो समय-समय पर उसकी एक से दो इंच की परत पलटते रहनी चाहिए। बाड़े की मिट्टी जितनी सूखी रहती है वहां की बकरियों को बीमारियों का खतरा उतना ही कम होता है।

बकरी के बच्चे को माँ का पहला दूध
जब बकरी गाभिन हो तो उसको ख़ूब हरा चारा और खनिज लवण खिलाना चाहिए। बकरियों को पालने वाले जेर गिरने तक बकरी के बच्चे को दूध नहीं पीने देते, जबकि बच्चे जितना जल्दी माँ का पहला दूध पीते हैं, तो उनकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता उतनी तेज़ी से बढ़ती है।

बकरियों को चारा और दाना
ज़्यादातर बकरी पालने वाले लोग बकरियों के खानपान पर ध्यान नहीं देते हैं। बकरियों को चराने के बाद खूँटे से बाँध देते हैं, जबकि चराने के बाद भी बकरियों को उचित मात्रा में चारा देना आवश्यक है, जिससे उनके माँस और दूध में वृद्धि हो सके। तीन से पाँच महीने के बकरी के बच्चों को चारे में दाने के साथ-साथ हरी पत्तियाँ खिलानी चाहिए।
स्लॉटर ऐज यानी मांस के लिए इस्तेमाल होने वाले 11 से 12 महीने के बकरी के बच्चों के चारे में 40 प्रतिशत दाना और 60 प्रतिशत सूखा चारा खिलाना चाहिए। इसके अलावा दूध देने वाली बकरियों को चारे के साथ में करीब 400 ग्राम अनाज देना चाहिए और प्रजनन वाले वयस्क बकरों को सूखे चारे के साथ हरा चारा और 500 ग्राम अनाज देना चाहिए।

बकरियों का प्रजनन प्रबन्धन कैसे करें?
समान नस्ल की मादा और नर में ही प्रजनन करवाना चाहिए। प्रजनन करने वाले नर बकरों की उम्र डेड़ से दो साल होनी चाहिए। लेकिन एक बकरे से प्रजनित सन्तान को उससे गाभिन नहीं करवानी चाहिए। यानी कि, बाप-बेटी का अन्तः प्रजनन नहीं होने दें, इससे आनुवांशिक विकृतियाँ पैदा हो सकती हैं। एक बकरा 20 से 30 बकरियों से प्रजनन के लिए पर्याप्त होता है। मादाओं में गर्मी चढ़ने के 12 घंटे बाद ही नर से मिलन करवाना चाहिए और प्रसव से पहले बकरियों के खाने में दाने का मात्रा बढ़ा देना चाहिए।

मेमने का प्रबन्धन
प्रसव होने के बाद मेमने को पहले साफ़ कपड़े से पोछ कर गर्भनाल को साफ़ और नये ब्लेड से काट लेना चाहिए और उस पर आयोडीन टिंचर लगाना चाहिए। इसके बाद मेमनों को मां का पहला दूध पीने दें। मेमने के 15 दिनों के बाद उनको हरा चारा और दाना दे सकते हैं और धीरे-धीरे दूध की मात्रा घटाते रहें। तीन महीने के बाद मेमनों को टीके लगवाएं।