गडकरी ने नए नियम पर मामला अभी शांत नहीं हुआ है। नए मामले ने इतना तूल पकड़ लिया है कि जनता भी कंपनियां तोड़ने लगी है। बेकाबू भीड़ पर मुकदमा करके उपद्रवियों को चिन्हित करके गिरफ्तारियां चल रही है। जनता को राजनितिक पार्टियां लड़वाने का काम करती है। लोकसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और हरदीप सिंह पुरी ने देश में पेट्रोल-डीजल की खपत और एथेनॉल ब्लेंडिंग को लेकर अहम जानकारियां साझा कीं। दोनों मंत्रियों ने बताया कि कैसे यह बदलाव न सिर्फ पर्यावरण के लिए अच्छा है, बल्कि किसानों और आम जनता की जेब के लिए भी फायदेमंद है।

परिवहन एवं राज्यमंत्री नितिन गडकरी ने कहा

अक्सर लोगों को डर रहता है कि E20 पेट्रोल डालने से उनकी पुरानी गाड़ी का इंजन खराब हो जाएगा। इस पर नितिन गडकरी ने भरोसा दिलाते हुए कहा, सरकार ने ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया (ARAI) के जरिए पुरानी गाड़ियों पर 1 लाख किलोमीटर तक की टेस्टिंग की है। इसमें न तो कोई इंजन फेल हुआ और न ही गाड़ी की परफॉर्मेंस में कोई कमी आई। गाड़ी स्टार्ट होने या चलने में कोई दिक्कत नहीं आई।

गडकरी ने बताया कि पूरे देश से सरकार को E20 फ्यूल को लेकर कोई शिकायत नहीं मिली है। गुजरात से एक शिकायत आई थी, लेकिन जांच में पता चला कि वह समस्या फ्यूल की वजह से नहीं थी। भारत हर साल 22 लाख करोड़ रुपये का फॉसिल फ्यूल (कच्चा तेल) इंपोर्ट करता है, जिससे प्रदूषण भी होता है। एथेनॉल एक ‘ग्रीन फ्यूल’ है। इसके इस्तेमाल से कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में भारी कमी आई है। यह कमी उतनी ही है, जितना फायदा 30 करोड़ पेड़ लगाने से होता। सरकार का लक्ष्य है कि भविष्य में पेट्रोल-डीजल का 22 लाख करोड़ का इंपोर्ट बिल खत्म किया जाए।

मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने क्या कहा?

केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने बताया कि एनर्जी किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की लाइफलाइन होती है। भारत की इकोनॉमी तेजी से बढ़ रही है, इसलिए एनर्जी की खपत भी बढ़ रही है। अगले 20 वर्षों में दुनिया में एनर्जी की जो डिमांड बढ़ेगी, उसमें 35% हिस्सेदारी अकेले भारत की होगी। हम अभी हर साल 150 बिलियन डॉलर तेल आयात पर खर्च करते हैं। E20 एथेनॉल की वजह से इसमें 20% की कमी आएगी।

हरदीप पुरी ने बताया कि एथेनॉल बनाने के तरीकों में बड़ा बदलाव आया है। पहले यह गन्ने और शीरे (Molasses) से बनता था। लेकिन अब कम पानी लेने वाली फसलों जैसे मक्का (Corn/Maize) पर फोकस किया जा रहा है। एथेनॉल उत्पादन में मक्के की हिस्सेदारी अब सबसे ज्यादा (करीब 46-48%) हो गई है। इसके अलावा चावल और गन्ने के जूस का भी इस्तेमाल हो रहा है। मक्के के अच्छे दाम मिलने से किसान इसकी खेती की तरफ आकर्षित हो रहे हैं।

एथेनॉल पॉलिसी की वजह से सरकार अब तक करीब 40 हजार करोड़ रुपये किसानों तक पहुंचा पाई है। सरकार का कहना है कि एथेनॉल ब्लेंडिंग से गाड़ियों का माइलेज और पिकअप (ऑक्टेन लेवल) सुधरता है और प्रदूषण 65% तक कम होता है। हालांकि, क्रूड ऑयल सस्ता होने की वजह से अभी एथेनॉल थोड़ा महंगा पड़ रहा है, लेकिन लंबे समय में यह देश और पर्यावरण दोनों के लिए फायदे का सौदा है।