मथुरा: वृंदावन के पूजनीय संत प्रेमानंद महाराज के पास एकांत में बातचीत के दौरान एक शख्स ने अपने दिल का दर्द और समस्या सुनाई। उसका कहना था कि उसके 150 से ज्यादा पुरुषों से समलैंगिक संबंध रहे हैं, लेकिन अब उसका मन बहुत अशांत रहता है और उसे हमेशा असुरक्षा महसूस होती है। उसने संत से पूछा कि अब उसे क्या करना चाहिए। इस पर संत ने उसे ढांढस बंधाते हुए जो कहा, वो सुनकर लोग हैरान हैं। उन्होंने कहा, “इसमें शर्माने जैसी कोई बात नहीं है। आपको तो ये समझना चाहिए कि आप पर भगवान की विशेष कृपा है।”
उस शख्स का सवाल सुनने के बाद प्रेमानंद महाराज ने कहा, “ये बात छिपाने या शर्माने लायक नहीं है। जैसे आप डॉक्टर से अपनी बीमारी नहीं छिपाते, वैसे ही गुरु के सामने भी अपनी बात खुलकर रखनी चाहिए।” उन्होंने आगे कहा, “हमें ऐसा लगता है कि तुम्हारे ऊपर भगवान की खास कृपा है। तुम्हारी स्त्री में कोई आसक्ति नहीं है। अगर तुम पुरुष से भी संबंध न रखो तो तुम एक भगवत प्राप्त महापुरुष बन सकते हो।”
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शास्त्रों में भी ऐसा वर्णन है कि जिसने भी कड़ी तपस्या की, उसे स्त्री के प्रति मोह या आसक्ति के कारण हार माननी पड़ी। तुम्हारा स्वाभाविक आकर्षण नहीं है (स्त्री के प्रति)। बस तुम्हें खुद को थोड़ा रोकना होगा।
उन्होंने उस शख्स से कहा, “विवेक से सोचो, एक दोस्त की तरह बताओ, ऐसा करने से तुम्हें क्या मिला?” सवाल पूछने वाले व्यक्ति ने जवाब दिया, “केवल डर और चिंता मिली।” प्रेमानंद जी बोले, “कोई सुख तो तुम्हें मिला नहीं। मुझे लगता है कि अगर तुम भगवान के नाम का जाप करो और अपनी इस आदत को कंट्रोल करो, तो बहुत ही उत्तम इंसान बन सकते हो। क्योंकि जो व्यक्ति गलत कामों में लगा रहता है, वो न अपना भला कर सकता है और न ही दूसरों का भला।”
प्रेमानंद जी का कहना था कि काम भावना सृष्टि को आगे बढ़ाने के लिए है। ये संतान प्राप्ति के लिए है, सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं। इसलिए अगर तुम थोड़ा विचार करो और अपनी इच्छाओं को नियंत्रण में लो, तो बहुत बेहतर इंसान बन सकते हो। क्या तुम अपनी जिंदगी ऐसे ही बर्बाद करना चाहोगे? मुझे लगता है कि तुम्हें नियम और संयम में आना चाहिए।
उस शख्स को हिम्मत देते हुए प्रेमानंद महाराज ने कहा, “ये तुम्हारे पिछले जन्मों के कर्मों (प्रारब्ध) की वजह से ऐसे संस्कार हैं। इन संस्कारों को जीतने के लिए ही तुम्हें ये मनुष्य शरीर मिला है। ये शरीर इसी आदत में मिट जाने के लिए नहीं मिला है। अगर तुम इसे जीत नहीं पाते तो ये आदत तुम्हें ही मिटा देगी।”