Khatu Shyam News – अगर आप महाभारत को ध्यान से देखें तो उसमें खाटू श्याम जी का किरदार बहुत महत्वपूर्ण है। आपको बता दे खाटू श्याम जी का मंदिर राजस्थान के शिकार नाम के शहर में पड़ता है। खाटू नाम के गांव में बर्बरीक कशिश मिला था इस वजह से उन्हें खाटू श्याम के नाम से पूजा जाता है। जब हम महाभारत के युद्ध की कल्पना करते हैं तब भगवान खाटू श्याम का प्रक्रम हमारे दिमाग में आता है उन्हें भगवान श्री कृष्ण का शिस्य माना जाता है।

अगर हम महाभारत के युद्ध को पढ़ते हैं तो उसमें खाटू श्याम के भाई का भी जिक्र किया जाता है। आज हम आपको उनके बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी देंगे जिसे पढ़कर आप आसानी से बाबा खाटू श्याम से जुड़ी एक रोचक जानकारी जान पाएंगे।

Khatu Shyam की पूजा क्यों की जाती है

भगवान खाटू श्याम को हारे हुए का सहारा माना जाता है। उन्हें हारे हुए का सहारा इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने हमेशा हारे हुए व्यक्ति की मदद करने का प्रण लिया था। जब महाभारत की लड़ाई के दौरान वह कौरव वंश की मदद करना चाहते थे तब भगवान श्री कृष्ण ने लीला खेल कर उनसे उनके शीश का दान ले लिया था। भगवान खाटू श्याम की पूजा पूरे भारतवर्ष में होती है। खाटू श्याम जी का मंदिर राजस्थान के सीकर नाम के शहर से 40 किलोमीटर दूर खाटू नाम के गांव में है। हर साल फागुन माह के एकादशी के दिन खाटू श्याम का मेला लगता है इस साल यह मेल 12 मार्च से शुरू होने वाला है 10 दिनों तक चलने वाले इस मेले में लाखों लोगों का ताता लगता है।

जानिए महाभारत के सबसे बड़े योद्धा के बारे में

महाभारत का सबसे बड़ा योद्धा बर्बरीक को माना जाता है जिसे वर्तमान समय में भगवान खाटू श्याम के नाम से पूजा जाता है। वह भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें तीन ऐसे तीर दिए थे जिन्हें आदेश देकर वह कहीं भी छोड़े तो उसका आदेश पूरा करके वह तीर वापस आ जाते थे। ऐसे में खाटू श्याम की मां ने उनसे वचन लिया था कि वह हमेशा हारे हुए पक्ष की तरफ से लड़ाई लड़ेंगे।

खाटू श्याम घटोत्कच का बेटा था इसलिए कायदे से उसे पांडव पक्ष से लड़ना चाहिए। लेकिन जब वह महाभारत के युद्ध स्थल पर पहुंचा तो उसने देखा की कौरव वंश हर रहा है। मां के वचन के मुताबिक उसे कौरव वंश के तरफ से लड़ना चाहिए, अगर ऐसा होता है तो बर्बरीक ने बताया कि वह मात्र तीन तीर चला कर पुरे पांडव को खत्म कर देगा। जब भगवान कृष्ण ने उसकी योग्यता को देखा और उसके कहे हुए बात को सत्य मान तब उन्होंने एक छोटी सी लीला की जिसमें एक साधु का भेष बनाकर उन्होंने बर्बरीक की वीरता से प्रसन्न होकर उससे शीश का दान मांगा।

भगवान श्री कृष्ण के कहने पर बर्बरीक ने उसी समय अपने शीश का दान दे दिया और अपने तीर को चलाकर शीश कटने का आदेश दे दिया। इस पर भगवान कृष्ण बहुत प्रसन्न हुए और उसे बताया कि बर्बरीक की सच में महाभारत के सबसे बड़े योद्धा थे वह अपने वरदान से श्री कृष्ण को भी हरा सकते थे। लेकिन महाभारत का युद्ध सत्य और झूठ की लड़ाई है इसमें सत्य पक्ष की जीत होना निश्चित है इसलिए उन्हें बर्बरीक से शीश का दान लिया। लेकिन भगवान कृष्ण ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि कलयुग में बर्बरीक को श्याम नाम से याद किया जाएगा।

बर्बरीक कशिश खाटू नाम के एक गांव में मिला था जो हर राजस्थान के सीकर शहर से 40 किलोमीटर दूर है। उन्हें कृष्ण की तरफ से श्याम नाम मिला था और खाटू नाम के जगह पर उनका शीश मिला इस वजह से इस मंदिर में उन्हें बाबा खाटू श्याम के नाम से जाना जाता है।

खाटू श्याम का भाई कौन था

आपको बता दे की खाटू श्याम के दो भाई थे अंजनपर्व और मेघवर्ण। बर्बरीक, अंजनपर्व और मेघवर्ण यह तीनों घटोत्कच के बेटे थे। बर्बरीक के दोनों भाई का जिक्र महाभारत में किया गया है दोनों ने युद्ध के दौरान अपनी वीरता का बेहतरीन परिचय दिया था। युद्ध के 14वें दिन बर्बरीक के दोनों भाइयों की मृत्यु होती है। करण के हाथों बर्बरीक के पिता घटोत्कच की मृत्यु होती है और गुरु द्रोणाचार्य के बेटे अश्वत्थामा के हाथों अंजनपर्व और वनसेन के हाथों मेघवर्ण का वध हुआ था।