Khatu Shyam Mela – फागुन के महीने में लगने वाली एकादशी के दिन राजस्थान में खाटू श्याम का मेला लगता है। हारे का सहारा कहे जाने वाले खाटू श्याम जी का मेला बड़े पैमाने पर लगता है और यहां लक्खी मेला भी लगता है इसे देखने के लिए दूर-दूर से लाखों लोग भी आते है। ऐसा माना जाता है कि फागुन के एकादशी के दिन खाटू श्याम जी ने अपना सर कृष्ण जी को दान में दिया था। बाबा खाटू श्याम महाभारत की लड़ाई के एक अनोखे पात्र हैं जिन्होंने 3 तीर में लड़ाई को खत्म कर देने की योग्यता दिखाई थी। उनकी योग्यता से प्रसन्न होकर भगवान कृष्ण ने उन्हें अपना नाम दिया था और इसी वजह से उन्हें श्याम नाम से कलयुग में याद किया जाता है।

आज भी हिंदू धर्म में हारे हुए व्यक्ति का सहारा खाटू श्याम को माना जाता है। क्योंकि उन्होंने अपने वरदान के साथ यह प्रण लिया था कि हमेशा हारे हुए व्यक्ति का ही साथ देंगे। आज भी खाटू श्याम जी के दर्शन करने के लिए बड़े पैमाने पर लोग पूरे देश भर से आते हैं हर साल फागुन माह के एकादशी में उनका एक मेला लगता है।

Khatu Shyam Mela कब है

हर साल फागन महीने की शुरुआत में यह मेला लगता है इस बार भी यह मेल होली से पहले 12 मार्च 2024 को शुरू हो रहा है। बाबा खाटू श्याम का मेला 10 दिनों तक चलता है इसे लक्खि मेला भी कहते हैं। यह मेल 21 मार्च तक चलने वाला है और इस आखिरी दिन को द्विदासी कहते हैं।

अगर आप इस मेला का हिस्सा बनना चाहते हैं तो अभी से ही ट्रेन की टिकट कर ले और खाटू श्याम जी का दर्शन जरूर करें। मगर इससे पहले आपको यह मालूम होना चाहिए कि भगवान खाटू श्याम को हारे हुए व्यक्ति का सहारा क्यों कहा जाता है और उन्होंने अपने शीश को दान में क्यों दिया था।

खाटू श्याम जी ने इसी दिन अपना शीश कृष्ण को दान में दिया था

यह कथा महाभारत युद्ध की है, बाबा खाटू श्याम घटोत्कच के बेटे थे। उस वक्त उन्हें बर्बरीक के नाम से जाना जाता था। उन्होंने भगवान की कड़ी तपस्या से तीन ऐसे बाण प्राप्त किए थे जिसे आदेश देकर कहीं भी छोड़ दिया जाए तो वह आदेश को पूरा करने के बाद लौट आते थे। इसी वरदान के साथ उन्होंने यह प्रण लिया था की बर्बरीक का हमेशा एक हारे हुए व्यक्ति का सहारा बनेगा।

महाभारत की लड़ाई में जब यह संदेश बर्बरीक को मिला कि कौरो हर रहे हैं तो वह कौरवों की तरफ से युद्ध करने के लिए आया। भगवान श्री कृष्ण को पता था कि अगर बर्बरीक एक तीर को यह आदेश देकर चला दे कि सबके प्राण चले जाए तो वह केवल एक तीर से ही सभी के प्राण ले सकता है। इसलिए भगवान कृष्ण ने उनके साथ एक लीला की और उसके बाद उनसे दान में उनका शीश मांग लिया। बर्बरीक बिना कोई सवाल करें सीधे अपना शीश काटकर भगवान श्री कृष्ण को दान में दे दिया।

भगवान बर्बरीक के पराक्रम और उनके ताकत को देखकर इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने बर्बरीक को कलयुग में श्याम नाम से प्रचलित होने का आशीर्वाद दिया। जिस दिन बर्बरीक ने अपना शीश भगवान श्री कृष्ण को दान में दिया था वह दिन फागुन का एकादशी था। इसलिए हर साल फागुन माह के एकादशी के शुक्ल पक्ष में बर्बरीक को बाबा खाटू श्याम के नाम से पूजा जाता है और उनका एक विशाल मेला आयोजित किया जाता है।