Why Marriage In Same Gotra I s Not Allowed: शादियों का मौसम शुरू हो चूका है. ऐसे में विवाह के लिए कुंडली मिलान शादी के लिए सब से पहला स्टेप है. कहते है कुंडली मिलान सबसे जरुरी होता है. क्योंकि इसी पर निर्भर करता है की आपका दांपत्य जीवन कैसा होने वाला है. होता ये है की जिस घर में विवाह के लायक युवक या युवती हो जाते है उस घर के बड़े इस बात को लेकर बहुत ही परेशान हो जाते है. बता दे असल में कुंडली मिलान में गोत्र जरूरी होता है. कहा जाता है कि गोत्र सभी जाति के लोगों का देखा जाता है. दरअसल पुराणों और स्मृति ग्रंथों के हिसाब से अगर कोई कन्या सगोत्र हो किंतु प्रवर न हो तो ऐसी कन्या के विवाह की अनुमति नहीं मिलती है.

संतान गोत्र

आपकी जानकरी के लिए बता दे महर्षि विश्वामित्र, जनदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, वशिष्ठ, कश्यप इन सप्तऋषियों और आठवें ऋषि अगस्ति की संतान गोत्र कहते है. मान लीजिए जिस व्यक्ति का गोत्र भरद्वाज है ऐसे में उसके पूर्वज ऋषि भारद्वाज है और वह व्यक्ति इन ऋषि का वंशज में से है. होता ये है कि आगे चलकर के ये गोत्र का संबंध धार्मिक परम्परा से जुड़ होता है और विवाह करते समय इसका उपयोग इस्तमाल किया जाता है.

देखा जाए तो आज ऋषियों की संख्या लाख करोड़ है ऐसे में गोत्रों की संख्या भी लाख करोड़ मानी जाने लगी. ऐसे में सामान्यतः आठ ऋषियों के नाम पर मूल आठ गोत्र पड़ते है जिनके वंश के पुरुषों के नाम पर अन्य गोत्र बनाए जाते है. महाभारत के शांतिपर्व में मूल चार गोत्र बताए गए हैं और इनमे अंगिरा, कश्यप, वशिष्ठ और भृंगु शामिल हैं.

जानिए क्या होता है प्रवर?

दरअसल विवाह निश्चित करते वक़्त गोत्र के साथ-साथ प्रवर का भी ख्याल रखना होता है. ऐसे में प्रवर भी प्राचीन ऋषियों के नाम के होते हैं, हालांकि दोनों में अंतर ये होता है कि गोत्र का संबंध रक्त से होता है वही प्रवर का संबंध आध्यात्मिकता से. बता दे कि गौतम धर्म सूत्र में भी असमान प्रवर विवाह का निर्देश दिया है जिसका मतलब यह है कि सेम प्रवर या गोत्र के पुरुष को कन्या नहीं देना चाहिए.