नई दिल्ली। बॉलीवुड की मशहूर एक्ट्रेस स्वरा भास्कर जो हमेशा चर्चा में बनी रहती हैं। एक बार फिर से सुर्खियो में छाई हैं। इस बार वे किसी विवादित बयान या फिल्म को लेकर नहीं बल्कि, फहाद जिरार से शादी करके सुर्खियों में हैं। स्वारा की जो शादी हुई है वो ना तो हिंदू मैरिज एक्ट के अंतर्गत हुई है, और ना ही मुस्लिम पर्नल लॉ के तहत शादी की है। स्वरा और फहाद ने अपने-अपने धर्म के दायरे में रहते हुए बिना धर्म बदले शादी की है, जिसको लेकर ये शादी और स्वारा सुर्खियों में हैं। इस कपल ने स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी की है। सवाल यह है कि क्या है स्पेशल मैरिज एक्ट (Special Marriage Act). बताते हैं इस आर्टिकल में आगे।

बॉलीवुड की हिरोइन स्वरा भास्कर ने फहाद जिरार से इसी कानून के तहत शादी की और शादी के बाद इस कानून की तारीफ के जम कर कसीदे पढ़ रही हैं। उन्होंने कहा कि यह कानून हमें अलग-अलग धर्मों में रहते हुए भी बिना धर्म बदले शादी करने का अवसर देता है। इस कानून की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा कि हमारे पास ऐसा कानून तो है जो दो प्यार करने वालों को बिना धार्मिक बंधन में बांधे शादी करने का मौका देता है। स्वरा ने अपने ऑफीशियल ट्वीट हैंडल से ट्वीट करते हुए लिखा कि “प्रेम का अधिकार, जीवन साथी चुनने का अधिकार, विवाह का अधिकार यह किसी का विशेषाधिकार नहीं होना चाहिए।”

क्या है इस कानून के मायने

हिंदू मैरिज एक्ट 1955 इस कानून के तहत दोनों का हिदू होना ज़रूरी है, वहीं मुस्लिम मैरिज एक्ट 1954 में भी दोनों का मुस्लिम होना आवश्यक है। लेकिन स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 ऐसा कानून है जिसे एसएमए भी कहा जाता है। यह एक्ट सिविल मैरिज का कानून है जो धर्म की बजाय राज्य को विवाह कराने का अधिकार देता है। वैसे विवाह, तलाक, बच्चे को गोद लेने जैसे काम धार्मिक नियमों के तहत निर्धारित होते हैं और इनको अलग से कानून का स्वरूप प्रदान किया गया है। जिन्हें पर्सनल लॉ का नाम दिया गया।

पर्सनल लॉ एक बड़ी समस्या

पर्सनल लॉ के तहत लड़का और लड़की दोनों ही एक ही धर्म के होने चाहिए यदि दोनों अलग-अलग धर्म के हों तो उन्हें कोई एक धर्म अपनाना होता है। उदाहरण के लिए यदि कोई हिंदू या मुस्लिम शादी करना चाहते हैं, और वे मुस्लिम मैरिज एक्ट के जरिए शादी करेंगे तो हिंदू को मुस्लिम धर्म अपनाना होगा और वहीं अगर दोनों हिंदू मैरिज एक्ट के जरिए शादी करेंगे तो मुस्लिम को हिंदू धर्म अपनाना होगा।

बिना धर्म बदल कर सकते हैं विवाह

पर इस मैरिज एक्ट के तहत जिसे एसएमए कहते हैं, उसमें बिना धर्म परिवर्तन किए बिना धार्म बदले अपनी पुरानी पहचान को कायम रखते हुए दोनों शादी कर सकते हैं। हमारे देश में एक वालिग कपल को सिविल और धार्मिक दोनो ही तरह के विवाह की अनुमति होती है। भारत एक धर्मनिर्पेक्ष देश है यहां सभी धर्मों को समानता दी गई है, इस कानून में कुछ शर्तें जरूर हैं, पर ये शर्तें किसी भी धर्म के आड़े नहीं आती हैं।

योग्यता का अहम पहलू

स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत सबसे प्रमुख शर्त यह होती है जिसमें शादी के समय दोनों में से कोई भी पक्ष पहले से मैरिड ना हों। कोई भी पक्ष मानसिक तौर पर शादी के लिए जायज सहमति देने की स्थिति में हों, वे मांनसिक तौर पर सक्षम हों तभी इसे जायज माना जाएगा। इसके अलावा दो में से कोई भी पागलपन या मानसिक बीमारी से ग्रसित ना हो, नहीं तो वे विवाह के लिए अयोग्य हो जाएंगे।

कैसे होती है यह प्रक्रिया

सामान्य तौर पर हमारा कानून लड़के के 21 और लड़की के 18 साल के होने पर शादी की अनुमति देता है। लेकिन 18 को 21 वर्ष करने का बिल जरूर पास हुआ है, पर यह बिल अभी कानून नहीं बन पाया है। स्पेशल मैरिज एक्ट के अंतर्गत शादी करने वाले जोड़े को सबसे पहले कानून की धारा 5 के तहत एक लिखित नोटिस जिले के मैरिज ऑफिसर को देना होता है, इसमें यह भी ज़रूरी है कि एक पक्ष कम से कम एक महीने से वहां का निवासी हो।

नोटिस मिलने के बाद ऑफिस उसे जारी करता है, जिसके 30 दिन बाद का समय दिया जाता है। इस एक महीने के समय में यदि किसी को शादी पर आपत्ति  हो तो उसकी जांच की जाती है। यदि आपत्ति की जांच में धारा 4 के किसी प्रावधान का उल्लंघन पाया जाता है तो शादी पर रोक लग जाती है, नहीं तो ये प्रक्रिया शुरू हो जाती है, जिसमें दोनों पक्षों की मौजूदगी आवश्यक होती है। इसके लिए तीन गवाहों की जरूरत पड़ती है जो मैरिज ऑफिस में दस्तखत करते हैं। इसके बाद आधिकारिक तौर पर शादी मान्य हो जाती है।