हमारे देश में ज्यादातर लोग खेती करके अपना जीवन व्यतीत करते हैं। इसमें भी ज्यादातर लोग चावल, गेहूं और गन्ने के बाद आलू की खेती सबसे ज्यादा करते हैं। हमारे देश में पूरे साल आलू की पैदावार होती रहती है, और अभी इस समय आलू की खुदाई का समय चल रहा है। वैसे भी हमारे देश में सब्जियों में सबसे ज्यादा आलू खाया जाता है।
यदि आप भी आलू की खेती करने का प्लान कर रहे हैं और इससे अपनी आमदनी को बढ़ाना चाहते हैं, तो हम आपको आलू की कुछ खास किस्मों की खेती करने के बारे बताने जा रहे हैं। आपको बता दें कि आलू में 80 से 82 प्रतिशत तक पानी और 14 प्रतिशत स्टार्च पाया जाता है। ये खाने में इतना टेस्टी होता है और हर किसी सब्जी में मिलाकर उसके टेस्ट को बढ़ा देता है।
इसके अलावा इसकी ये खूबी भी है कि आप इसको कितने भी दिनों तक स्टोर करके रख सकते हैं और इससे आप तरह-तरह के व्यंजन बना सकते हैं। इसीलिए ही आलू को सब्ज़ियों का राजा कहते है। आज हम इस लेख में आपको आलू की उन्नत किस्मों के बारे में बताने जा रहे हैं।
1. कुफरी चंद्रमुखी
इस किस्म के आलू के पौधे के तने में लाल व भूरे रंग धब्बे के साथ हरा होता है, और इसकी फसल को तैयार करने में करीब 80 से 90 दिनों का समय लगता है। प्रति हेक्टेयर इसकी पैदावार 200 से 250 क्विंटल होती है। इसके अलावा उत्तर भारत के मैदानी और पठारी क्षेत्र में इस किस्म के आलू खेती के लिए अच्छे माने जाते हैं।
2. कुफरी गंगा
इस किस्म के आलू की पैदावार कम समय में अधिक होती है, और प्रति हेक्टेयर इसकी पैदावार 250 से 300 क्विंटल तक होती है। जिसको तैयार होने में कम से कम 75 से 80 दिनों का समय लगता हैं। इस आलू की खेती के लिए उत्तर भारत के मैदानी इलाके सेस अच्छे माने जाते हैं।
3. कुफरी अलंकार
इस किस्म के आलू की उपज प्रति हेक्टेयर 200 से 250 क्विंटल तक होती है, इसकी फसल को तैयार होने में 70 दिन लगते हैं, और इसकी अच्छी पैदावार उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में होती है।
4. कुफरी नीलकंठ
इस किस्म के आलू एंटीऑक्सिडेंट से भरपूर और बेहतरीन किस्म की होती है, और इसकी उत्पादन क्षमता भी काफी अच्छी होती है। इस आलू की फसल को 90 से 100 दिनों में तैयार किया जाता है। प्रति हेक्टेयर इसकी उत्पादन क्षमता 350-400 क्विंटल होती है और इसकी अच्छी पैदावार उत्तर भारत के मैदानी इलाकों होती है।
5. कुफरी ज्योति
इस किस्म की आलू सबसे बेहतरीन होती है, और यह किस्म पहाड़ी, मैदानी और पठारी इलाकों के लिए उपयुक्त मानी जाती है। इस आलू की फसल को तैयार होने में 80 से 150 दिनों में होती है, तो वहीं मैदानी इलाकों में ये फसल जल्दी तैयार हो जाती है।