आप जानते ही होंगे की हमारी सेहत पर खानपान का व्यापक प्रभाव पड़ता है। हम क्या और किस प्रकार से ग्रहण करते हैं। इसका असर हमारे शरीर पर तुरंत दिखाई पड़ने लगता है। अतः बड़ा प्रश्न यह है की हमें किस प्रकार से भोजन करना चाहिए ताकी हम रोगमुक्त स्वस्थ रह सकें। इसका समाधान प्रेमानंद महाराज ने दिया है। आइये अब आपको बताते हैं की प्रेमानंद महाराज ने भोजन के संबंध में क्या विचार रखें हैं।

प्रेमानंद महाराज ने कहा

भोजन के संबंध में प्रेमानंद महाराज ने कहा है की हमें सदैव हल्का भोजन ही करना चाहिए। हल्के भोजन से आपकी आध्यात्मिक ऊर्जा बढ़ती है। शरीर को हल्का तथा स्वस्थ रखना आवश्यक है अन्यथा आप आने वाले समय में अपने शरीर का वजन भी नहीं उठा पाएंगे। प्रेमानंद महाराज बताते हैं की 24 घंटे में प्रत्येक मानव को मात्र 2 से 4 रोटियां ही खानी चाहिए। यह आपके शरीर के लीये काफी होता है। अपने शरीर के खानपान की एक सीमा को निर्धारित करना चाहिए। प्रेमानंद महाराज आगे कहते हैं की यदि आप अधिक पौष्टिक पदार्थों का सेवन करते हैं तो उसके पचने में काफी समस्या आती है और इस कारण आपकी आंते खराब हो सकती हैं।

प्रेमानंद महाराज का भोजन सिद्धांत

भोजन के संबंध में प्रेमानंद महाराज ने एक सिद्धांत बताया है। जिसके अनुसार पेट का एक हिस्सा भोजन, एक हिस्सा पानी और लगभग आधा हिस्सा वायु के लिए रहना चाहिए। इस प्रकार से भोजन करने पर आपकी ऊर्जा बढ़ती है। भोजन करने की कैपिसिटी तथा उससे होने वाली समस्याओं के बारे में प्रेमानंद महाराज ने बताया है की भोजन को हमेशा भूख से कम मात्रा में करना चाहिए। ऐसा करने से आपको अपच, गैस तथा पेट फूलने जैसी समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता है। अतः यदि आप इस सिद्धांत के अनुसार भोजन ग्रहण करते हैं तो आप लंबे समय तक स्वस्थ बने रहते हैं।

कौन हैं प्रेमानंद महाराज

आपको बता दें की प्रेमानंद महाराज आज के समय के प्रसिद्ध संत हैं। ये वृंदावन में निवास करते हैं। इनके भजन-सत्संग में दूर दूर से लोग आते हैं। माना जाता भगवान भोलेनाथ ने प्रेमानंद महाराज को दर्शन दिए थे, जिसके बाद से ही वे गृह त्याग कर वृंदावन में आ गए थे। 13 वर्ष की आयु में प्रेमानंद महाराज ने संन्यास लेकर वाराणसी में निवास करना शुरू किया। यहीं पर एक अनजान संत ने उन्हें चैतन्य महाप्रभू की लीला देखने को आमंत्रित किया। जिसके बाद वे वृंदावन में आकर राधा वल्लभ सम्प्रदाय से जुड़ गए थे और आज तक यहीं पर हैं।