द्वापर में भगवान् श्री कृष्ण की लीलाओं ने सभी को मोहित किया। भगवान् श्री कृष्ण की हर एक लीला के पीछे विशेष बात होती थी। कोनसी लीला कब और क्यों करनी है, इन सभी के पीछे विशेष कारण होता था। सबसे मशहूर गाना है श्याम चूड़ी बेचने आया। इस गाने को हर कोई गुनगुनाता है। भागवत कथा हो या भजन संध्या, इस गाने को बहुत ही मजे के साथ गाया जाता है। लेकिन इसके पीछे के रहस्य को जानने का प्रयास बहुत कम लोग करते हैं। इंडिया में कृष्ण भक्ति और कथा सुनने का प्रचलन बढ़ता ही जा रहा है। बहुत से कथा वाचक तो भजन के पीछे के रहस्य को भी बताते हैं।

जया किशोरी की कथा

कथा वाचक जया किशोरी जब वाचन करती है तो सभी बड़े ध्यान से सुनते हैं। जया किशोरी के भजन भी काफी ज्यादा व्यूज वाले वीडियो होते हैं। श्याम चूड़ी बेचने आया गाना भजन लोकप्रिय भजन है। इस भजन को अक्सर महिलाऐं बहुत गुनगुनाती है। कृष्ण भगवान् जब छोटे थे तो बहुत ही नटखट थे। उनकी बाल लीलाएं देखने बैठ जाएं तो शायद ही उठने का मन करे। कृष्ण जी के बड़े भाई बलराम जी और पिता नन्द लाल जी खुद उनकी लीलाओं को देखकर हैरान रह जाते थे। लेकिन बलराम जी को ये सब पता था कि भगवान् का अवतार है। पूरा ब्रज तो कृष्ण के प्रेम में रंगा हुआ रहता था।

श्याम चूड़ी बेचने आया

एक बार कृष्ण भगवान् रास करने गए तो राधाजी काफी सज धजकर आई। राधा रानी को देखकर कान्हा एक बार के लिए चौंक गए। कान्हा ने राधा के गले में मोतियों का हार देखा, जो बेहद ही खूबसूरत लग रहा था। जैसे ही कान्हा ने उसे देखने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया तो राधा के मन में मजाक करने का ख्याल आया। राधा जी ने सोचा आज विनोद किया जाए। तो राधा जी ने कहा कान्हा ये बहुत महंगा है तुम्हारे बस की बात नहीं है। ऐसा कहकर पीछे हट गई राधा जी। बस फिर क्या था कान्हा भी बिना रास के ही घर आ गए। दूसरे दिन से राधा जी तो रास के लिए आती मगर कान्हा नहीं आए। ऐसा देखकर राधा जी जी घर पर रोने लगी और गुमसुम रहने लगी।

राधा जी के पिता वृषभानु जी को जब ये बात पता चली तो उन्होंने अपने सिपहसालारों से बात की। सभी ने कहा की लड़की समझदार हो जाए तो शादी कर देनी चाहिए। लड़के का सुझाव माँगा तो उनके मित्र नन्द लाल जी का छोरा पहले नंबर पर आया। वृषभानु जी ने रिस्ता भेजा और 108 खोमचे (पात्र) अलग अलग चीजों से भरे हुए भेजे गए। साथ में लिखा गया कि स्वीकृति पत्र शीघ्र भेजें। अब जब रिस्ता लेकर पुरोहित जी घर आए तो कान्हा के मन में बेहद ख़ुशी हुई। लेकिन 108 खोमचे में से एक खोमचा मोतियों से भरा हुआ था, जिसे देखकर कान्हा का मन थोड़ा विचलित हुआ।

मोतियों से लदे हुए पेड़

कान्हा ने उस खोमचे में से एक मुट्ठी मोती लिए और घर के पीछे उगा दिए। जब स्वीकृति पत्र के साथ 108 खोमचे भेजने की बारी आई तो नंदलाल जी ने मिलान किया। ऐसे समय मोती कम पाए गए। नन्द लाल जी ने द्वारपालों से पूछा की कोई आया था क्या ? तब पता चला की कान्हा आया था। जब कान्हा से पूछा गया कि तूने चोरी की है। पहली बार कान्हा ने सीधे कबूल कर लिया और बता दिया की ये तो मैने उगा दिए। जब नन्द बाबा ने बोला की चल कहां है। तब घर के पीछे जाकर देखा तो मोतियों से लदे हुए बड़े बड़े पेड़ दिखाई दिए। कान्हा ने कहा कि स्वीकृति पत्र के साथ अब 108 खोमचे मोतियों से भरकर भेजो।

राधा के घर आया स्वीकृति पत्र

जब राधा जी के घर स्वीकृति पत्र के साथ 108 खोमचे आए तो एकबार के लिए राधा दौड़ती हुई महल से नीचे आई। जब आँगन में रखे खोमचों से राधा ने कपडा हटाना शुरू किया तो पहले से लेकर हर एक में मोती ही मोती दिखने लगे। राधा ने जैसे ही ये देखा तो सिर्फ एक ही बात दिमाग में आने लगी कि मुझे बताने के लिए ही भेजे गए हैं। कि हमारे घर भी मोती है। मुझे चिढ़ाने के लिए भेजे गए हैं। अब तो राधा जी ने खाना पीना भी छोड़ दिया। ना किसी से मिलना और ना ही कमरे से बाहर आना।

वृषभानु जी की चिंता तो पहले से भी ज्यादा बढ़ गई। ऐसे में उन्होंने गाँव और आस पास में ढिंढोरा पिटवाया कि जो राधा के चेहरे पर मुस्कान ला देगा, उसे इनाम दिया जाएगा। बात पहुँचते पहुँचते कृष्ण तक पहुंची। कान्हा ने बोला की खाना पीना भी छोड़ दिया। इसके बाद कृष्ण ने अपनी माँ के कपडे पहने और लाल, पीली, नीली, हरी चूड़ियां लेकर मनियारी का वेश बना लिया। अब राधा की गली में आवाज लगाना शुरू कर दिया। उसी गली में चूड़ी ले लो चूड़ी की आवाज लगाना शुरू कर दिया। अब जब राधा के कान में ये आवाज पहुंची तो लगा कि ये सुनी हुई लग रही है। आवाज सुनी हुई लगी तो बुलवाया गया। जब मनियारी के वेश में कान्हा आया तो राधा को चूड़ियां पहचनाने लगा। पहनाते हुए कृष्ण ने जैसे ही हाथ दबाया तो राधा के चेहरे पर मुस्कान आ गई। जय जय श्री राधे।