देश के सर्वोच्च न्यायलय यानि कि सुप्रीम कोर्ट ने चेक बाउंस के मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला लिया है। इस पर कहा है कि चेक बाउंस के लिए केवल इसलिए किसी भी व्यक्ति को दोषी नहीं माना जा सकता है क्योंकि वह उस फर्म में पार्टनर और लोन के लिए गारंटर था।
इस पर सर्वोच्च अदालत ने आगे कहा कि धारा 141 के अंतर्गत किसी व्यक्ति पर केवल इसलिए कार्रवाई नहीं कर सकते हैं क्योंकि साझेदारी अधिनियम के अंतर्गत दायित्व भागीदार पर पड़ता है।

इस मामले पर सर्वोच्च न्यायालय ने आगे कहा, “जब तक कंपनी या फर्म एक मुख्य आरोपी के रूप में अपराध नहीं करती है, व्यक्ति उत्तरदायी नहीं होगा और उनको प्रतिपक्षी रूप से उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकेगा।

33 लाख से ज्यादा चेक बाउंस के मामले
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सुप्रीम कोर्ट एक फर्म के द्वारा किए गए चेक बाउंस होने पर अपीलकर्ता को दोषी ठहराये जाने की चुनौती देने वाली एक याचिका पर फैसला कर रही थी। चेक में उस व्यक्ति के बजाय किसी अन्य साथी के साइन थे। इस शिकायत में फर्म को आरोपी नहीं था।

हमारे देश में चेक बाउंस एक बड़ी समस्या बन गया है और देश की अदालतों में चेक बाउंस के 33 लाख से भी ज्यादा मामले लंबित हैं। जिनमें से 7.37 मामले तो पिछले 5 महीनों के हैं।

हमारे देश में चेक बाउंस होने एक अपराध माना जाता है। चेक बाउंस के नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट, 1881 के अनुसार चेक बाउंस होने में व्‍यक्ति पर मुकदमा चलाया जाता है। ऐसे में उस व्यक्ति को 2 साल की जेल या चेक में भरी राशि का दोगुना जुर्माना या दोनों देना पड़ सकता है। लेकिन ये सिर्फ उस स्थिति में ही होगा जब चेक देने वाले के अकाउंट में पर्याप्‍त बैलेंस न हो और बैंक चेक को डिसऑन कर दे।

चेक बाउंस पर कब होता है मुकदमा
चेक के डिसऑनर होते ही भुगतानकर्ता पर मुकदमा नहीं किया जाता है। चेक बाउंस होने पर पहले बैंक की तरफ से लेनदार को एक रसीद जाती है, जिसमें उस व्यक्ति को चेक बाउंस होने का कारण बताना पड़ता है। जिसको लेनदार को 30 दिनों के अंदर इस नोटिस को देनदार को देना पड़ता है। लेकिन यदि नोटिस के 15 दिनों के अंदर देनदार की तरफ से कोई जवाब नहीं आता है तो चेक लेने वाला अदालत में नोटिस में 15 दिन गुजरने की तारीख से एक महीने में ही शिकायत दे सकता है।

इसके बाद भी रकम का भुगतान नहीं किया जाता है तो चेक देने वाले के खिलाफ केस कर देते हैं। नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138 के अंतर्गत चेक बाउंस एक दंडनीय अपराध है और इसमें अपराधी व्यक्ति यानि की चेक देने वाले को दो साल की सजा और जुर्माना या फिर दोनों देना पड़ सकता है।