हमारे देश में आज भी ऐसी कई जगहें हैं जहां पर मोबाइल नेटवर्क की समस्या है। ऐसी ही समस्या छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले के सोनहत विकासखण्ड के एक दर्जन से ज्यादा गांव वाले झेल रहे हैं।

इस समस्या से परेशान कुछ गांवों के युवाओं ने डिजिटल भारत में प्रवेश करने के लिए जुगाड़ से लकड़ी का मोबाइल टावर का निर्माण किया है। इसमें मोबाइल रखते ही आपके फोन पर बात करने लायक नेटवर्क आ जाता है, लेकिन फिर भी इसमें नेट नहीं चलता है। पहाड़ी क्षेत्र के ये गांव दशकों से मोबाइल नेटवर्क की समस्या से परेशान हैं।

रामगढ़ इलाके के सिंघोर गांव में मोबाइल टावर का ढांचा सालों से खड़ा हुआ है, लेकिन इसमें फ्रीक्वेंसी नहीं होने के कारण ये कबाड़ के जैसे ही है। इस परेशानी से बचने के लिए गांव के युवाओं ने लकड़ी का मोबाइल टावर तैयार किया है।

इसकी रेंज में आकर किसी भी सिम का मोबाइल काम करने लगता है, लेकिन मोबाइल में इंटरनेट नहीं होने के कारण सिंघोर, अमृतपुर, सेमरिया, सुकतरा, उधैनी, उज्ञाव जैसे इलाकों में ग्रामीणों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

गांव के लोग लकड़ी के टॉवर के सहारे मोबाइल पर बात करते है, लकड़ी के बने टॉवर के स्टैंड पर मोबाइल रखने पर मोबाइल में नेटवर्क आने पर कॉल से बातचीच हो जाती है।

मोबाइल में नेटवर्क नहीं होने से वहां के लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। इस समस्या से परेशान लोगों ने अलग -अलग जगहों में जाकर मोबाइल में नेटवर्क ढूंढना शुरू किया। जहां पर उनको मोबाइल में हल्का सा भी नेटवर्क दिखा तो उन्होंने उस स्थान पर लकड़ी का खूंटा गाड़ दिया और मोबाइल रखने के लिए एक स्टैंड लगा दिया।

इस स्टैंड में मोबाइल रखकर लोग कॉल पर बातचीत करते है, और इस स्टैंड से मोबाइल के हटाते ही कॉल डिस्कनेक्ट हो जाता है। गांव में लगभग आधा दर्जन स्थानों में ऐसे टॉवर बनाए गए है। यहां पर ग्रामीणों को राशन लेने में ही दो दिन लग जाते है।

सरकार द्वारा दिए जाने वाले राशन को लेने के लिए पहले दिन ग्रामीणों को गांव से करीब 6 किलोमीटर दूर पहाड़ पर जाकर मोबाइल नेटवर्क आने वाली जगह पर जाना पड़ता है। वहां पर राशन दुकानदार ग्रामीणों से थम्ब लगवाते हैं और फिर उसके अगले दिन राशन दुकान से राशन वितरित करते हैं।